फर्जी सर्टिफिकेट बनाकर 19 साल लेते रहे नौकरी के मजे, 4 अधिशासी अभियंता अब हुए बाहर….
फर्जी सर्टिफिकेट बनाकर 19 साल लेते रहे नौकरी के मजे, 4 अधिशासी अभियंता अब हुए बाहर
प्रदेश में बेरोजगारी एक तो चरम पर है और यहाँ फर्जी तरीके से बाहरी व्यक्ति आसानी से भर्ती होकर सरकारी नौकरी लेने में सफल हो रहे हैं, इनपर कड़ी कार्रवाही होनी चाहिए।
देहरादून: पेयजल निगम में गलत तरीके से आरक्षण का लाभ लेकर नौकरी पाने वाले चार अधिशासी अभियंताओं की सेवा समाप्त कर दी गई है। इनमें से तीन 2005 और एक 2007 में भर्ती हुए थे।
Uttarakhand UJVNL Fired Four Executive Engineer
एक तरफ जहाँ प्रदेश के युवा सरकारी नौकरी पाने के लिए दिन रात मेहनत कर रहे हैं फिर भी पेपर लीक और तमाम के घोटालों से उन्हें भी सफलता नहीं मिल रही वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग फर्जी तरीके से सरकार की नाक के नीचे से उत्तराखंड में सरकारी नौकरी हांसिल कर रहे है और फिर विभाग को पता चलता है सालों बाद, इस तरह की लापरवाही से न सिर्फ सरकार का नुकसान है बल्कि तैयारी कर रहे उन छात्रों के लिए भी चिंता का विषय है। सरकार को इस तरह के मामले में कड़ी कार्रवाही करते हुए इसे रोकना होगा ताकि भविष्य में इस तरह का फर्जीवाड़ा करने से पहले लोग दस बार सोचें।
बाहरी राज्यों के अभ्यर्थी फर्जी दस्तावेज बनाकर हुए थे भर्ती
मामला पेयजल निगम का है जहाँ चार अधिशासी अभियंताओं को नौकरी से निकाला गया है। इनमें से अधिशासी अभियंता सुमित आनंद और मुनीष करारा वर्ष 2005 में भर्ती हुए थे और ये दुसरे राज्य के रहने वाले हैं। इन्होने फर्जी दस्तावेज बनाकर अनुसूचित जाति आरक्षण का लाभ लिया और भर्ती हो गए। इसी तरह मुजम्मिल हसन यूपी के रहने वाले हैं और ये भी वर्ष 2005 में फर्जी दस्तावेज बनाकर ओबीसी आरक्षण का लाभ लेकर भर्ती हुए थे। जबकि दुसरे राज्य के अभ्यर्थियों को प्रदेश में सामान्य वर्ग के तहत ही एंट्री मिलती है। वहीं वर्ष 2007 में बाहरी राज्य निवासी सरिता गुप्ता उत्तराखंड में महिला वर्ग में आरक्षण का लाभ लेकर भर्ती हुई थी। इन सभी की जांच के बाद कार्रवाई पर सलाह के लिए पेयजल निगम प्रबंधन ने फाइल कार्मिक विभाग को भेजी और उनके निर्देशों पर चारों को आरोपी अभियंताओं को अपना पक्ष रखने का मौका दिया था लेकिन उनकी तरफ से संतोषजनक जवाब न मिलने पर उनकी सेवाएं समाप्त कर दी गई है।
गलत भर्ती प्रक्रिया का जिम्मेदार कौन ?
लेकिन अब सवाल ये उठता है कि इन लोगों को गलत तरीके से भर्ती करने का जिम्मेदार कौन होगा? क्या भर्ती करने वालों की कभी कोई जांच हुई है? या उनपर कोई कारवाही होगी? तमाम सवालों के बीच बताया जा रहा है कि जिन अधिकारीयों के समय ये भर्ती हुई थी उन्हें रिटायर हुए पांच साल से अधिक हो चुका है तो कार्रवाही करना मुश्किल है। उत्तराखंड सरकार को इस तरह के भर्ती घोटालों की जांच के लिए एक उच्च स्तरीय टीम गठित करनी चाहिए जो सिर्फ प्रदेश में होने वाले भर्ती घोटाओं को रोकने और उनपर कार्रवाही करने पर काम करे।